पीलिया क्या है?
पीलिया होने पर त्वचा और आंखों का सफेद हिस्सा पीला पड़ जाता है। ऐसा खून और शरीर के ऊत्तकों में बिलिरुबिन नामक तत्व की मात्रा बढ़ने की वजह से होता है। बिलिरुबिन की मात्रा में यह वृद्धि कई अलग-अलग बीमारियों की वजह से हो सकती है। समस्या की जड़ चाहे कोई भी बीमारी हो, त्वचा और आंखों के सफेद हिस्से का पीला होना आमतौर पर पीलिया (जॉन्डिस) के नाम से जाना जाता है।
बिलिरुबिन तब बनता है जब शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं अपने जीवन चक्र के अंतिम चरण पर पहुंच जाती हैं और टूटने लगती हैं। जब यकृत (लीवर) सही ढंग से कार्य कर रहा हो, तो यह बिलिरुबिन का संसाधन (प्रोसेस) करके इसे पाचन तंत्र में पहुंचा देता है। इसके बाद बिलिरुबिन पेशाब या मल के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है। जब यकृत उचित ढंग से काम न कर पा रहा हो या फिर शरीर में बहुत सारी लाल रक्त कोशिकाएं टूटने लगती हैं, तो खून में बिलिरुबिन की मात्रा बहुत बढ़ सकती है। इसे पीलिया कहा जाता है।
नवजात पीलिया,
नवजात पीलिया शिशुओं में होने वाली सामान्य स्थिति है, जिससे त्वचा और आंखों का सफेद रंग पीला हो जाता है। यह रक्त में बिलिरूबिन नामक एक प्राकृतिक पदार्थ की वृद्धि के कारण होता है।
पीलिया के मुख्य तीन प्रकार होते हैं:
हैप्टोसैलुलर जॉन्डिस, यह यकृत से जुड़ी बीमारी या चोट लगने पर होता है।
ऑब्सट्रक्टिव जॉन्डिस, यह पित्त वाहिनी (बाइल डक्ट) में अवरोध होने की वजह से होता है। क्योंकि इस कारण से बिलिरुबिन लीवर से बाहर नहीं निकल पाता।
हीमोलाइटिक जॉन्डिस, यह बहुत ज्यादा लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने की वजह से होता है। इससे रक्त में बिलिरुबिन की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
जौंडिस कितने प्रकार का होता है?
जिन वाइरस से यह होता है उसके आधार पर मुख्यतः पीलिया तीन प्रकार का होता है वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी।
बच्चे को पीलिया हो जाए तो क्या करना चाहिए?
यदि बिलिरूबिन का स्तर बहुत अधिक है या बहुत तेज़ी से बढ़ता है, तो आपके बच्चे को अस्पताल में फोटोथेरेपी की आवश्यकता होगी।
अधिकांश पीलिया पीड़ित बच्चों को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। शिशुओं के लिवर के विकसित होते ही पीलिया अपने आप ठीक हो जाएगा।
पीलिया के लिए कौन सा टेस्ट होता है?
अभी पीलिया की जांच के लिए टोटल सीरम बिलीरुबिन टेस्ट होता है। इसमें रक्त का नमूना लेने के बाद कम से कम चार घंटे रिपोर्ट आने में लगते हैं। नवजात शिशुओं में हर 16 घंटे के बाद वह टेस्ट रिपीट किया जाता है ताकि उपचार के फायदे को देखा जा सके।
नार्मल पीलिया कितना होना चाहिए?
रक्तरस में पित्तरंजक (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को कामला या पीलिया (Jaundice) कहते हैं। सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं।
जौंडिस बीमारी कैसे होता है?
यह बाइल लीवर द्वारा रिलीज किया जाता है। बिलीरुबिन लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने से बनता है। किसी भी व्यक्ति को पीलिया कई कारण से हो सकता है। अनुवांशिक सिंड्रोम, ब्लड डिजीज, बाइल डक्ट का ब्लॉक हो जाना, इंफेक्शन, कुछ दवाएं और हेपेटाइटिस आदि इन कारणों में शामिल हैं।
बच्चे का नार्मल पीलिया कितना होता है?
34 माइक्रोन/एल (2 मिलीग्राम/डीएल) से अधिक एक बिलीरुबिन स्तर दिखाई दे सकता है। अन्यथा स्वस्थ शिशुओं में चिंता तब होती हैं जब स्तर 308 माइक्रोन/एल (18 मिलीग्राम/डीएल) से अधिक होते हैं, जीवन के पहले दिन में जांदी देखी जाती है, स्तरों में तेजी से वृद्धि होती है, जौनिस दो सप्ताह से अधिक रहता है, या बच्चा अस्वस्थ दिखता है।
पीलिया होने पर क्या नहीं खाना चाहिए?
पीलिया में तला-भुना, मिर्च-मसाले वाला भोजन हानिकारक होता है। इसलिए ऐसी चीजों को पीलिया होने के कम से कम 20-25 दिन तक तो बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए। वसायुक्त भोजन से बीमारी ठीक होने के बाद भी दूर रहना चाहिए। पीलिया में मिठाइयां, बेसन की चीजें, मैदा के व्यंजन, मांस, अंडे और मछली नहीं खाने चाहिए।
जन्म के बाद पहले 24 घंटे के अंदर होने वाले पीलिया को क्या कहते हैं?
सामान्यत: बच्चों को जन्म के बाद पीलिया की शिकायत देखने में आती है। इसमें जो सामान्य पीलिया होता है उसे फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस कहते हैं।
पीलिया कब तक ठीक हो जाता है?
जन्म के बाद नवजात को पीलिया हो जाए, तो घबराने की जरूरत नहीं, शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह लें। हालांकि नवजात को हुआ पीलिया 24-48 घंटे में स्वत: ठीक भी हो जाता है। आंखों का रंग पीला हो जाए, तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करें।
पीलिया की कौन सी जांच होती है?
मृत कोशिकाओं को यकृत छान नहीं पाता है तो रक्त में बिलुरुबिन का स्तर बढ़ने लगता है। ये आसपास के ऊतकों में चला जाता है। मरीज की यूरिन व आंखों और शरीर का पीला पड़ने लगता है। रक्त जांच कर बिलुरुबिन की मात्रा से पीलिया का पता लगाया जाता है।
क्या पीलिया में दूध पीना चाहिए?
मात्र सात दिनों में ही पुराने से पुराना रोग जड़ से नष्ट हो जाएगा । अरंड के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम तक गाय के कच्चे दूध में मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इसके सेवन से 3 से 7 दिनों में पीलिया नष्ट हो जाता है।
पीलिया में कौन सी दाल खानी चाहिए?
बीन्स और मसूर की दाल
पीलिया के मरीजों के आहार में बीन्स और मसूर की दाल भी शामिल की जा सकती है। ये पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। इनके सेवन से मरीज को जल्द ठीक होने में मदद मिलेगी। ध्यान रहे कि इन्हें बनाने के लिए तेल-मसालों का प्रयोग न करें।
पीलिया में क्या परहेज करना चाहिए?
डॉक्टर हमेशा पीलिया के मरीजों को मसालेदार चीजों का सेवन न करने की सलाह देते हैं। इसके अलावा, जंक फूड से भी परहेज करना चाहिए। इनमें मसालों का अधिक इस्तेमाल किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसान भी साबित होता है। चाय और कॉफी में कैफीन पाया जाता है, जो सेहत के लिए नुकसानदेह होता है।
काला पीलिया के लक्षण क्या होते हैं?
लक्षण : भूख न लगना, वजन कम होना, पीलिया, बुखार, कमजोरी, उलटी, पेट में पानी भर जाना, खून की उलटियां होना, रंग काला होने लगना, पेशाब का रंग गहरा होना आदि।
लिवर खराब की पहचान क्या है?
लिवर खराब होने के लक्षणों में उल्टी होना, कम भूख लगना, थकावट, दस्त होना, पीलिया, लगातार वजन घटना, शरीर में खुजली होना, एडिमा, पेट में तरल पदार्थ बनना आदि शामिल हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि लिवर की सुरक्षा के लिए शराब के ज्यादा सेवन से बचना चाहिए।
लीवर की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
पालक और गाजर के रस का मिश्रण “लीवर सिरोसिस” के लिए फायदेमंद घरेलू उपचार है,सेब और हरी पत्तेदार सब्जी पाचन तंत्र में उपस्थित जहरीली चीजों को बाहर निकलने में और लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करता है,भुई–आंवला या भू-धात्री एक ऐसी औषधि हैं, जो हमारे लीवर को संपूर्ण सुरक्षा देता है। इसका प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।
फैटी लिवर में कौन सी टेबलेट लेनी चाहिए?
रोगी को लक्षणों के अनुसार फॉस्फोरस, कैलकेरिया दवा देते हैं। जिन्हें फैटी लिवर की समस्या अधिक शराब पीने से हुई है उन्हें नक्सवोमिका दवा दी जाती है। वहीं फैटी लिवर के साथ गैस की दिक्कत हो तो लाइकोपोडियम दवा से आराम पहुंचाते हैं।
लिवर की गंदगी कैसे साफ करें?
फाइबर वाले फूड्स जैसे कि सेब, गाजर, फूलगोभी, चुकंदर और हरी पत्तेदार सब्जियां को शरीर में विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए मददगार माना जाता है। ये फूड्स पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में भी कारगर होते हैं। अगर आप लिवर को डिटॉक्स करने के लिए नेचुरल तरीके तलाश रहे हैं, तो फाइबर से भरपूर चीजों का सेवन करें।
लीवर बढ़ने पर क्या खाना चाहिए?
फैटी लिवर डिसीज में डॉक्टर लोगों को मछली या सी फूड, फल, साबुत अनाज, बादाम, ओलिव ऑयल, हरी सब्जियां, एवोकाडो और फलीदार सब्जियां खाने की सलाह देते हैं। आपकी कोशिकाएं ग्लूकोज से एनर्जी बनाने का काम करती हैं।फैटी लिवर डिसीज में अक्सर लोगों को इंसुलिन रेसिस्टेंस की दिक्कत हो जाती है।
बच्चों में पीलिया होने का पता कैसे चलता है और इसका उपचार क्या है?
डॉक्टर आपसे बच्चे के लक्षणों के बारे में पूछेंगे। वे बच्चे की जांच करेंगे और देखेंगे कि उसकी टांगों, टखनों और पैरों में सूजन तो नहीं है।
कम्पलीट ब्लड काउंट और हीमोग्लोबिन के स्तर की जांच के लिए वे खून की जांचें करवाने के लिए कहेंगे। लीवर फंक्शन टेस्ट भी करवाया जाएगा। इससे रक्त में बिलिरुबिन की मात्रा का पता चलता है। डॉक्टर पेशाब की जांच और पेट का अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए भी कह सकते हैं, ताकि स्थिति और साफ हो सके।
पीलिया का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस कारण से हुआ है। यदि बच्चे को हैपेटाइटिस ए या ई की वजह से पीलिया हुआ है, तो यह अपने आप ठीक हो जाएगा। मगर, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि शिशु संतुलित आहार का सेवन करें, पर्याप्त तरल पदार्थ ले और खूब आराम करे, ताकि वह जल्दी ठीक हो सके।
पीलिया अगर किन्हीं अन्य कारणों से हुआ है तो डॉक्टर बच्चे की उम्र और उसकी स्थिति के अनुसार उपचार व दवाएं देंगे।
बेहतर है कि बिना डॉक्टरी सलाह के बच्चे को हर्बल या कोई अन्य वैकल्पिक उपचार न दिए जाएं। इनमें से कुछ उपचार डॉक्टर द्वारा दिए गए उपचार के बीच में खलल डाल सकते हैं जिससे बच्चे को ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है।
नवजात शिशु में पीलिया होने के लक्षण क्या हैं ?
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण सामान्य तौर पर दो हफ्तों के भीतर नजर आने लगते है। बच्चा यदि दो या तीन सप्ताह का हो जाता है तो लक्षण व उपचार के बिना अपने आप ठीक हो जाता है। बच्चों में लक्षण में आम तौर पर त्वचा और आंखे पिली होती है। शुरुवात में सिर से शुरू होकर, छाती, पेट, पैरो, बाहों में फैलने लगता है।
नवजात बच्चों में अनेक लक्षण दिखाई देते है।
- शिशु का मूत्र रंगहीन होना।
- आँख, चेहरा, हथेली पीला होना।
- वजन न बढ़ना।
- दूध पिने में कमजोर होना।
- पिले मल आना।
- बुखार आना।
नवजात शिशु में पीलिया होने का कारण क्या हैं ?
- फिजियोलॉजिकल पीलिया आमतौर पर जन्म के कुछ दिनों बाद दिखाई देता है और दो सप्ताह के भीतर हल हो जाता है। अन्य प्रकार के नवजात पीलिया, समय से पहले जन्म लेने, स्तनपान से संबंधित समस्याओं, संक्रमण, माँ और बच्चे के बीच रक्त के प्रकार के साथ-साथ अन्य रक्त या जिगर की समस्याओं के कारण हो सकते हैं।
- नवजात शिशु में पीलिया आमतौर पर इसलिए होता है क्योंकि बिलीरुबिन के बढ़े हुए स्तर का उत्पादन होता है जिसे “फिजियोलॉजिकल पीलिया” कहा जाता है। बिलीरुबिन, जो कि पीले रंग का होता है, यह तब उत्पन्न होता है जब लाल रक्त कोशिकाएं टूट जाती हैं। बिलीरुबिन जिगर द्वारा रक्तप्रवाह से हटा दिया जाता है। नवजात शिशुओं में, शरीर जिगर की प्रक्रिया की तुलना में अधिक बिलीरुबिन का उत्पादन कर सकता है।
- यदि आपको अपने बच्चे में पीलिया के लक्षण दिखाई देते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करना महत्वपूर्ण है। यदि आपको पीलिया पर संदेह है, तो आपको उसी दिन अपने डॉक्टर को देखने की आवश्यकता होगी। जबकि पीलिया आमतौर पर बहुत ही उपचार योग्य है, सबसे चरम मामलों में यह मस्तिष्क क्षति का कारण बन सकता है।
नवजात शिशु में पीलिया का उपचार क्या हैं ?
सामान्य तौर पर नवजात बच्चे पीलिया होने पर दो सप्ताह में बिना किसी उपचार के ठीक हो जाते है। गंभीर पीलिया होने पर चिकिस्तक सर्जरी कर सकते है। नवजात शिशु के रक्त में बिलीरुबिन के स्तर को कम करने के लिए निम्न उपचार किया जा सकता है। जिनमे फोटो थरेपी, इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन, एक्सचेंज ब्लड ट्रांसफ्यूजन आदि शामिल है।
नवजात शिशु में पीलिया की जांच ?
नवजात शिशु में पीलिया का पता लगाने के लिए कारण का पता करते है। चिकिस्तक बच्चों के लक्षण के आधार पर परीक्षण करते है ताकि पीलिया का निदान कर सके। पीलिया के निदान के लिए रक्त में बिलीरुबिन का स्तर मापा जाता है। बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने पर पीलिया गंभीर हो सकता है। पीलिया की जांच करने के लिए निम्नलिखित परीक्षण करते है,
- नवजात बच्चो में किसी यंत्र की सहायता से पीलिया की जांच की जाती है।
- बच्चो के पूर्ण पीलिया के परीक्षण के लिए पूर्ण रक्त परीक्षण का सुझाव दे सकता है।
- सबसे पहले चिकिस्तक बच्चे के त्वचा, शरीर, आंखे, हथेली के पीलेपन का परीक्षण करता है।
- बच्चे के रक्त का नमूना लेकर जांच करता है ताकि बिलीरुबिन को मापा जा सके।
धन्यवाद!!