रेनॉड रोग क्या है, (Raynaud’s Phenomenon/Syndrome Disease), रेनॉड रोग के प्रकार, रेनॉड रोग के लक्षण, रेनॉड रोग का कारण, रेनॉड रोग का निदान, रेनॉड रोग का इलाज, (by GS India Nursing).

रेनॉड रोग क्या है (Raynaud’s Phenomenon Disease):-

रेनॉड एक ऐसी बीमारी है जिसमें हाथ और पैर की उंगलियों के साथ शरीर के कुछ हिस्से, कम तापमान या तनाव की प्रतिक्रिया में सुन्न या ठंडे हो जाते हैं सामान्य रूप से रेनॉड  रोग में तनाव को रक्त की आपूर्ति करने वाली छोटी धनिया संकीर्ण हो जाती हैं जिसके कारण उस हिस्से में रक्त का परिसंचरण कम हो जाता है वैसे तो ज्यादातर लोगों के लिए यह कोई बहुत गंभीर समस्या नहीं है हालांकि, रक्त प्रवाह कम होने के कारण कुछ लोगों को समस्याएं जरूर बढ़ सकती हैं  रेनॉड डिजीज को रेनॉड्स फिनोमिनन और रेनॉड सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है।

Raynaud’s Syndrome (disease)

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को रेनॉड बीमारी होने का खतरा अधिक होता है इसके अलावा ठंडे स्थानों पर रहने वाले लोगों में रेनॉड रोग विकसित होने का डर रहता है रेनॉड रोग का इलाज इसकी गंभीरता और व्यक्ति की अन्य स्वास्थ्य स्थितियों पर निर्भर करता है रेनॉड रोग के कारण जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।

रेनॉड रोग दो प्रकार का होता है पहला प्राइमरी और दूसरा सेकेंडरी। यदि किसी व्यक्ति को सेकेंडरी रेनॉड डिजीज की समस्या है, जिसमें हाथ और पैर की उंगलियों में रक्त का संचार कम हो जाता है तो इस स्थिति में कोशिकाओं का क्षति होने का भी डर होता है इसके अलावा धमनियों की पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाने के कारण घाव (त्वचा के अल्सर) या ऊतक को क्षति (गैंग्रीन) की समस्याएं भी हो सकती हैं।

इस लेख में हम रेनॉड रोग के लक्षण कारण और उसके इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

रेनॉड रोग के प्रकार:- (types of Raynaud’s Phenomenon),

रेनॉड रोग दो प्रकार का होता है।

प्राइमरी रेनॉड:-

प्राइमरी रेनॉड रोग की समस्या किसी भी चिकित्सा स्थिति का परिणाम नहीं है। इसका प्रभाव आमतौर पर इतना हल्का होता है। कि ज्यादातर लोगों को इसके इलाज की आवश्यकता नहीं होती है यह स्वयं ही ठीक भी हो जाती है।

सेकेंडरी रेनॉड:-

इसे रेनॉड फिनोमिनन नदी कहा जाता है। यह कई प्रकार की अंतर्निहित समस्याओं का कारण हो सकता है। इसमें ल्यूपस और रूमेटॉइड आर्थराइटिस शामिल है। प्राइमरी रेनॉड की तुलना में सेकेंडरी रेनॉड असामान्य और अधिक गंभीर हो सकती हैं। इसमें त्वचा पर घाव और गैंग्रीन की समस्या हो सकती हैं। सेकेंडरी रेनॉड के लक्षण आमतौर पर 40 वर्ष की आयु के आसपास दिखाई देते हैं।

रेनॉड रोग के लक्षण (Raynaud’s Phenomenon Symptoms):-

जिन लोगों को रेनॉड रोग की समस्या होती है उनमें मुख्य रूप से निम्न लक्षण देखने को मिल सकते हैं।

  • हाथ और पैरों की उंगलियों का ठंडा हो जाना।
  • तनाव की स्थिति में त्वचा के रंग में परिवर्तन।
  • सुन्न होना, जुभन जैसा महसूस होना और गर्माहट देने पर चुभने वाला दर्द होना।

रेनॉड रोग के दौरान सबसे पहले त्वचा के प्रभावित हिस्से सफेद हो जाते हैं इसके बाद त्वचा का रंग बदलकर नीला हो सकता है। इसके साथ ही शरीर के उन हिस्सों के ठंडे हो जाने और सुन्न होने जैसा अनुभव हो सकता है जैसे ही आप गर्म सेकाई करते हैं या रक्त के परिसंचरण में सुधार होता है वैसे ही प्रभावित हिस्सा लाल हो जाता है और उन हिस्सों में झुनझुनी या सूजन भी हो सकती है

वैसे तो ज्यादातर मामलों में रेनॉड रोग के कारण हाथों और पैरों की उंगलियां सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। हालांकि कुछ मामलों में यह शरीर के अन्य हिस्सों जैसे नाक, और कान, और निपल्स, को भी प्रभावित कर सकता है त्वचा के गर्म होने के बाद आमतौर पर 15 मिनट में सामान्य रक्त प्रवाह फिर से शुरू हो जाता है

रेनॉड रोग का कारण (Raynaud’s Phenomenon Causes):-

रेनॉड रोग के कारणों को अब तक स्पष्ट रूप से समझा नहीं जा सका है विशेषज्ञों का मानना है की हाथों और पैरों की रक्त वाहिकाओं को कम तापमान दिया तनाव की प्रतिक्रिया के कारण यह समस्या देखी जाती है कम तापमान रेनॉड रोग  का प्रमुख कारक माना जाता है हाथों को ठंडे पानी में डालने फ्रीजर से कुछ लेना या ठंडी हवा में रहने से भी यह समस्या बढ़ सकती है इसके अलावा कुछ लोगों में तनाव के कारण भी रेनॉड रोग ट्रिगर हो सकता है।

कनेक्टिव टिशू डिजीज:-

स्केलरोडमाॆ अरमा जैसे दुर्लभ बीमारियां जो त्वचा को सख्त बना देती है वह रेनॉड रोग का कारण बन सकती हैं इसके अलावा कई अन्य बीमारियों जैसे ल्यूपस, रूमेटाइड अर्थराइटिस और स्योग्रेन सिंड्रोम के कारण भी रेनॉड रोग का खतरा रहता है।

  • पुरुषों की तुलना में महिलाओं को इसकी 9 गुना अधिक संभावना होती है।
  • वैसे तो सभी उम्र के लोगों को रेनॉड हो सकता है लेकिन आमतौर पर 15 से 25 वर्ष की उम्र के बीच इसका प्राथमिक रूप दिखाई देने लगता है।
  • माध्यमिक रेनॉड ज्यादातर 35 वर्ष की उम्र के बाद होने की संभावना ज्यादा होती है।
  • रूमेटाइड गठिया से पीड़ित व्यक्ति को माध्यमिक रेनॉड  होने की संभावना अधिक होती है।
  • जो जो लोग कैंसर, माइग्रेन, या उच्च रक्तताप के इलाज के लिए दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें भी रेनॉड्स फिनोमिनन होने की संभावना अधिक होती है

रेनॉड रोग की जांच:-

यदि डॉक्टर को शक है कि आपको रेनॉड रोग या इस्केमिया सिंड्रोम हुआ है तो वह लक्षणों से जुड़े कुछ सवाल आपसे पूछेंगे। इसके साथ ही आपके हाथ और पैर की उंगलियों की जांच करेंगे। इसके साथ ही डॉक्टर एक मैग्नीफाई ग्लास, (जिसे डर्मोस्कोप कहते हैं), का इस्तेमाल कर नाखूनों के चारों ओर रक्त वाहिकाओं को देख सके कि क्या उनका आकार बढ़ गया है।

रेनॉड रोग उपचार:-

रेनॉडस सिंड्रोम का प्रारंभिक उपचार दवा सही होता है जबकि कुछ मामलों में हाथों का तापमान नियंत्रित करने के लिए बायोफीड बैक तकनीक का सहारा लिया जाता है यदि दवाइयों से यह नियंत्रित नहीं होता है तो सरवाइकल सिम्पेथेक्टोमी सर्जरी की जाती है।

सावधानियां बरतें:-

घर में कभी नंगे पैर ना चले हर हाल में ठंडे पानी के संपर्क में ना आएं। रेफ्रिजरेटर मैं अपना हाथ ना डालें खुले फ्रिज के आगे ना खड़े हो। डिटर्जेंट पाउडर व कपड़े धोने वाले साबुन का हाथों से इस्तेमाल ना करें सर्दी के मौसम में हाथों व पैरों में गर्म ऊनी दस्ताने व जुराब का इस्तेमाल करें।घर में बर्तन व प्लेट धोने के वक्त या रसोईघर में सिंक में काम करते समय रबर के दस्ताने अवश्य पहनें।

मैं आशा करती हूं। कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा।।

धन्यवाद। (By GS Indian Nursing, Lucknow)………!!

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