पोस्टपार्टम हैम्रेज (Postpartum hemarrhage)/PPH क्या हैं? PPH के लक्षण और PPH कितने प्रकार होते हैं, PPH प्रिवेंशन/रोकथाम क्या है?

  • पोस्टपार्टम हैम्रेज (Postpartum hemarrhage)/PPH क्या हैं?
  • पोस्टपार्टम हैम्रेज के कारण क्या हैं?
  • PPH/पोस्टपार्टम हैम्रेज कितने प्रकार के होते हैं?
  • पोस्टपार्टम हैम्रेज/PPH को कैसे रोका जा सकता है?
  • पोस्टपार्टम हैम्रेज कब समाप्त होता है?
  • PPH प्रिवेंशन/रोकथाम क्या है?

पोस्टपार्टम हैम्रेज (PPH) क्या हैं:

शिशु के जन्म के बाद से लेकर 6 सप्ताह (डिलीवरी के बाद 42 दिन तक) के मध्य होने वाला असामान्य रक्तस्राव जिसके कारण रोगी की सामान्य परिस्थितियां प्रभावित होती है।

PPH/पोस्टपार्टम हैम्रेज/Postpartum Hemorrhage

पोस्टपार्टम हैम्रेज प्रसव की तृतीय अवस्था की एक जटिलता है जिसमें असामान्य रक्तस्राव होता है। यह एक गंभीर जटिलता है। जिसमें तुरंत प्रबंधन करना आवश्यक होता है यह शिशु के जन्म के बाद कभी भी हो सकता है।

महत्वपूर्ण जानकारी पोस्टपार्टम हैम्रेज के बारे में:

बच्चे के जन्म के बाद ब्लीडिंग होना आम बात है पर अगर यह जरूरत से ज्यादा होने लगे तो यह पोस्टपार्टम हैम्रेज (पीपीएच) की ओर इशारा करता है पोस्टपार्टम हैम्रेज मैटरनल मोर्टालिटी का एक प्रमुख कारण है। और यह तब होता है जब वजाइनल यानी नॉर्मल डिलीवरी के बाद 500 मिली से ज्यादा मात्रा में खून बह जाता है। सिजेरियन डिलीवरी के बाद लगभग 1000 मिली ब्लीडिंग होती है, और जब यह इससे ज्यादा होने लगे तो यह पोस्टपार्टम हैम्रेज कहलाता है पोस्टपार्टम हैम्रेज दो प्रकार के होते हैं।

PPH/पोस्टपार्टम हैम्रेज कितने प्रकार के होता है:

प्राइमरी पोस्टपार्टम और सेकेंडरी पोस्टपार्टम हैम्रेज।

प्राइमरी पोस्टपार्टम हैम्रेज (PPH):

जब डिलीवरी के समय 24 घंटों के अंदर ब्लीडिंग होती है तो ऐसे प्राइमरी पीपीएच कहा जाता है।

सेकेंडरी पोस्टपार्टम हैम्रेज (PPH):

जब डिलीवरी के समय 24 घंटे गुजरने के बाद और 6 सप्ताह बीतने तक, बहुत अधिक मात्रा में ब्लड लॉस हो जाता है तो इससे सेकेंडरी पीपीएच कहते हैं।

पोस्टपार्टम हैम्रेज के कारण क्या है

  • गर्भाशय के ब्लड वेसल्स का फट जाना।
  • इनवर्टेड यूट्रस
  • वलवा या वजाइनल रीजन में हेमाटोमा, जो कि पेल्विस में एक बंद टिशु एरिया एवं खाली जगह में होने वाली ब्लीडिंग से होता है।
  • सर्वाइकल या वजाइनल टिशू का फट जाना ।
  • प्लेसेंटा एक्रीटा जिसमें प्लेसेंटा असामान्य रूप से गर्भाशय के निचले हिस्से के साथ जुड़ जाता है।
  • प्लेसेंटा पक्रेंटा जिसमें प्लेसेंटल टिशु गर्भाशय की मांसपेशियों के अंदर चले जाते हैं और फट भी जाते हैं।
  • प्लेसेंटा इंक्रेटा, जिसमें गर्भाशय की मांसपेशियों, पर प्लेसेंटा के टिशु अवरोध पैदा करते हैं।

कुछ मामलों में बच्चे को जन्म देने के बाद यूट्रस सिकुड़ना बंद कर देता है जिसमें ब्लड वेसल्स मैं बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है इसे यूटरिन एटोनी कहा जाता है। जिसमें हैम्रेज की संभावना हो बढ़ सकती है। और यह प्राइमरी पीपीएच का एक सामान्य कारण है‌। जब प्लेसेंटा के छोटे टुकड़ों गर्भाशय में जुड़े हुए रह जाते हैं। तो ऐसी स्थिति में भी अत्यधिक ब्लीडिंग हो सकती है।

  • प्लेसेंटा का पूरी तरह अलग ना हो पाना।
  • प्लेसेंटा का कुछ भाग अंदर रह जाना।
  • अत्यधिक तेज प्रसव होना।
  • अत्यधिक लंबा प्रसव होना।
  • उल्बीय तरल पदार्थ (Amniotic fluid) की अत्यधिक मात्रा होना।
  • बहु – गर्भावस्था।
  • प्लेसेंटा का समय पूर्व विलय हो जाना।
  • प्लेसेंटा प्रीविया।
  • सामान्यता पूर्ण बेहोशी की स्थिति में होना।
  • प्रीवियस हिस्ट्री ऑफ पीपीएच।
  • ग्रैंड मल्टीपैरिटी।
  • रक्ताल्पता
  • पेरिनियल या गर्भाशय ट्यूमर।

गर्भाशय का फट जाना एक जानलेवा स्थिति है। और जिन महिलाओं ने पहले फाइब्रॉएड रिमूवल या सी-सेक्शन सर्जरी करवाई है उन्हें इसका खतरा ज्यादा होता है।

पोस्टपार्टम हैम्रेज लक्षण क्या है:

  • तीव्र रक्तस्राव होना।
  • शरीर पीला हो जाना
  • धड़कन तेज चलना।
  • बेचैनी।
  • बेहोशी।
  • तेज दर्द होना।
  • तीव्र कमजोरी आना।
  • संक्रमण होने पर बुखार आना।
  • ब्लीडिंग जिसे कंट्रोल न किया जा सके।
  • रेड ब्लड सेल काउंट का कम होना।
  • जेनिटल एरिया में सूजन आना।
  • ब्लड प्रेशर में गिरावट होना।

डिलीवरी के बाद कितने लंबे समय तक ब्लीडिंग हो सकती है:

यह ब्लीडिंग बच्चे के जन्म के बाद 2 हफ्तों से लेकर 6 हफ्तों के बीच में कुछ हो सकती है। यह एक भारी पीरियड ब्लीडिंग जैसा लगता है। और तेज बहाव या धीमा भी हो सकता है यह डिस्चार्ज जैसा कुछ भी हो सकता है। इसे लोकिया कहते हैं। शुरू में यह अधिक होता है। और चमकीले रंग का होता है पर धीरे-धीरे इसका रंग पहले गुलाबी और फिर भूरा हो जाता है जल्दी इसका रंग पीला सफेद हो जाता है और यह डिस्चार्ज कम होने लगता है।

पोस्टपार्टम हैम्रेज के खतरे को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां (पीपीएच) कहलाते हैं।

  • प्लेसेंटा अब्रप्शन, जिसमें प्लेसेंटा समय से काफी पहले गर्भाशय से अलग हो जाता है।
  • प्लेसेंटा प्रीविया, जिसमें प्लेसेंटा खिसक कर सर्विक्स की ओपनिंग के पास आ जाता है और कई बार उसे बंद कर देती है।
  • मल्टीपल प्रेगनेंसी (गर्भ में 1 से अधिक बच्चों का होना)
  • बच्चे का आकार बड़ा होने का कारण गर्भाशय की बहुत ज्यादा खिंचाव होना।
  • लंबे समय तक चलने वाला लेबर।
  • पहले कई डिलीवरी हो चुकी होने की स्थिति में।
  • मोटापा एंड इनफेक्शन।
  • लेबर के दौरान कंट्रक्शन ना होना।
  • डिलीवरी के दौरान फोरसेप या वैक्यूम का इस्तेमाल करना।

पोस्टपार्टम हैम्रेज की जटिलताये क्या है:

  • संक्रमण।
  • हाइपोवॉलूमिक शॉक।
  • खून की कमी।
  • डेथ।

शीहन सिंड्रोम, में अत्यधिक मात्रा में खून बह जाने से पिट्यूटरी ग्लैंड तक जाने वाला ब्लड फ्लो रुक जाता है जिससे सेल्स नष्ट हो जाती है एनेमिया के रोगियों के लिए पीपीएच बहुत खतरनाक हो सकता है और उन्हें खून चढ़ाने की नौबत भी आ सकती है ऐसी परिस्थितियों में पोस्टपार्टम हैम्रेज का खतरा बढ़ जाता है और इससे समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना ज्यादा होती हैं।

पोस्टपार्टम हैम्रेज का डायग्नोसिस कैसे किया जाता है:

पोस्टपार्टम हैम्रेज का निदान करने के लिए लक्षण और ब्लड टेस्ट सबसे जरूरी है आपकी मेडिकल हिस्ट्री के साथ-साथ शारीरिक परीक्षण की मदद से भी डॉक्टर किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। पहले डॉक्टर को आपकी प्रेगनेंसी लेबर और डिलीवरी के बारे में पूरी जानकारी की जरूरत होगी। बर्थ कैनाल के टेस्ट से आपके डॉक्टर को किसी क्रोमा का पता लगाने में मदद मिलेगी प्लेसेंटा की जांच भी की जाएगी जिसमें सही नतीजे मिल सके टेस्ट के अंतर्गत खून की क्लोटिंग फैक्टर्स रेड ब्लड सेल काउंट, पल्स रेट, ब्लडप्रेशर, और ब्लड लॉस का अनुमान लगा लेता है।

पोस्टपार्टम हैम्रेज का इलाज क्या है:

पोस्टपार्टम हैम्रेज का इलाज आपके संपूर्ण स्वास्थ्य मेडिकल हिस्ट्री और आपके परिस्थितियों की सीमा जैसी तथ्यों पर निर्भर करता है। हैम्रेज कारणों का पता लगना ही और उस दूर करना ही इसका इलाज का मुख्य उद्देश्य है। इसके इलाज के कोर्स में निम्नलिखित से बातें शामिल की गई है।

  • गर्भाशय के अंदर ब्लीडिंग पर काबू पाने के लिए एक बाकरी बलून या एक फॉलो कैथेटर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • गर्भाशय मैं स्थिति प्लेसेंटा के बचे हुए टुकड़ों को बाहर निकाला जाता है।
  • गर्भाशय के कॉन्ट्रक्शन शुरू होने के लिए दवाई देना ‌।
  • गर्भाशय और अन्य पेल्विक टिशु का विस्तृत परीक्षण किया जाता है।
  • एक लेप्रोटोमी भी की जा सकती है जिसमें ब्लीडिंग पर काबू पाने के लिए पेट को खोलकर सर्जरी की जाती है।
  • यूटरिन कंप्रेशन टांकों के द्वारा डॉक्टर खून बहा रहे ब्लड वेसल्स को बंद कर सकते हैं।
  • आखिरी उपाय के तौर पर कुछ विशेष मामलों मे हिस्टेरेक्टॉमी भी की जा सकती है।

पोस्टपार्टम हैम्रेज प्रबंधन और रोकथाम के उपाय:

  • पोस्टपार्टम हैम्रेज की रोकथाम के लिए पर्याप्त प्रसव पूर्व देखभाल दी जानी चाहिए।
  • प्रसव पूर्व प्रति दौरान फर्स्ट विजिट के समय रोगी की प्रसूति इतिहास लेनी चाहिए एवं यदि पिछले प्रसव के समय पीपीएच हुआ हो तो इसे विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए।
  • प्रसव पूर्व के दौरान रोगी में एनीमिया की जांच के लिए अक्सर एचबी परीक्षा किया जाना चाहिए एवं एनीमिया होने पर आयरन एवं फोलिक एसिड युक्त टेबलेट 100 दिनों तक दी जानी चाहिए।
  • पीपीएच की स्थिति में ब्लड चढ़ाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • यदि होम डिलीवरी की जा रही है तो इस स्थिति में रोगी को तुरंत अस्पताल ले जाने का प्रबंधन करना चाहिए। एवं रोगी को हॉस्पिटल में भर्ती कराने तक, रोगी के साथ रहना चाहिए।
  • हॉस्पिटल दाई जो अब तक पीपीएच का उपचार करने जा रही हैं उसे श्रम इतिहास जानी चाहिए।
  • ब्लीडिंग का मुख्य कारण प्रायः एटॉनिक यूट्रस होता है। अतः यूट्रस में कांट्रेक्शन प्रेरित करने के लिए यूट्रस की जेंटल मसाज की जानी चाहिए। प्रायः मालिश यूट्रस के बुध्नपरक (Fundal) भाग पर की जाती है।
  • र्भाशय में संकुचन प्रेरित करने के लिए यूटेरोटोनिक दवाएं प्रशासित दी जाती है। यह दवाई होती हैं जो गर्भाशय में संकुचन प्रेरित करती हैं (मेथरगिन,एर्गोमेट्रिन 0.5mg IV, ऑक्सीटोसिन)
  • ब्लीडिंग को रोकने के लिए गर्भाशय द्वैमासिक संपीड़न (Bimanual compression) किया जाता है।
पीपीएच का दौरा/PPH visit

पीपीएच विजिट आशा को समय-समय पर करनी चाहिए। और घर के सदस्यों को भी रक्तस्राव का ध्यान रखना चाहिए यदि रक्तस्राव ज्यादा मात्रा में हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर को जानकारी देना चाहिए।

मैं आशा करती हूं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा।।

धन्यवाद!! (by GS India Nursing, Lucknow, India)…

Dr. Sanu AK……!!

Dr. Anu….!!

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