*आइए देखते हैं, कुछ नर्सिंग परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों को , संक्षिप्त रूप में एवं वैकल्पिक रूप में –*
(प्रश्न) 1- लाइसा टाइप 1 किस बीमारी का कारक जीव है?
A – रेबीज
B – एड्स
C – मंप्स
D – रूबेला
(प्रश्न) 2 – बीसीजी वैक्सीन देने के बाद कितने वर्षों तक इम्यूनिटी रहती है?
A – 10 वर्ष
B – 15वर्ष
C – 5 वर्ष
D – 9 वर्ष
(प्रश्न) 3 – मलेरिया निम्न मे से कैसी बिमारी है?
A – बैक्टिरियल
B – प्रोटोजोल
C – फंगल
D – वायरल
(प्रश्न) 4 – जल संतुलन मे योगदान देने वाला हार्मोन कौन सा है?
A – TSH
B – ADH
C – ACTH
D – FSH
(प्रश्न) 5 – चावल के पानी के समान मल –
A – पेचिश
B – टाइफाइड
C – डायरिया
D – कालरा
**उपरोक्त दिए गए वैकल्पिक प्रश्नों के उत्तर नीचे दिए गए हैं,**
(उत्तर) 1- A – रेबीज
(उत्तर) 2 – B – 15वर्ष
(उत्तर) 3 – B – प्रोटोजोल
(उत्तर) 4 – B – ADH
(उत्तर) 5 – D – कालरा
**ध्यान देने योग्य बातें **-
लाइसा टाइप 1,
रेबीज का कारक जीव लाइसा वायरस टाइप वन है। जो रबडोवायरस समूह से संबंधित है। यह बुलेट के आकार का आर एन ए वायरस है। यह तंत्रिका कोशिकाओं में गुडा करता है, और संक्रमित जानवरों की लार ,मूत्र ,लसीका ,रक्त और दूध में पाया जाता है।
रेबीज,
रेबीज एक बीमारी है ,जो कि रेबीज नामक विषाणु से होते हैं ,यह मुख्य रुप से पशुओं की बीमारी है, लेकिन संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती यह विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है ,जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है। यह भी बहुत मुमकिन होता है, कि संक्रमित लार से किसी की आँख, मुहँ या खुले घाव से संक्रमण होता है।
इस बीमारी के लक्षण मनुष्यों में कई महीनों से लेकर कई वर्षों तक में दिखाई देते हैं। लेकिन साधारणतः मनुष्यों में ये लक्षण 1 से 3 महीनों में दिखाई देते हैं। रेबीज के प्रारंभिक लक्षणों में बदल जाते हैं। जैसे – आलस्य में पड़ना, निद्रा आना या चिड़चिड़ापन आदि, अगर व्यक्ति में ये लक्षण प्रकट हो जाते है, तो उसका जिंदा रहना मुशिकल हो जाता है। उपरोक्त बातों में ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि रेबीज बहुत ही महत्वपूर्ण बिमारी है और जहाँ कहीं कोई जंगली या पालतू पशु जो कि रेबीज विषाणु से संक्रमित हो के मनुष्य को काट लेने पर आपे डॉक्टर कि सलाहनुसार इलाज करवाना अत्यंत ही अनिवार्य है।
रेबीज का वायरस संक्रमित जानवरों की लार ग्रंथियों (salivary glands) में मौजूद होता है। जब ये संक्रमित जानवर (infected animal) किसी को भी काटता है तो ये वायरस घाव के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाता है। फिर मस्तिष्क तक पहुंचता है और सेंट्रल नर्वस सिस्टम में स्थापित हो जाता है।
लक्षण ,
रेबीज बीमारी के लक्षण संक्रमित पशुओं के काटने के बाद या कुछ दिनों में लक्षण प्रकट होने लगते हैं लेकिन अधिकतर मामलों में रोग के लक्षण प्रकट होने में कई दिनों से लेकर कई वर्षों तक लग जाते हैं।रेबीज बीमारी का एक खास लक्षण यह है कि जहाँ पर पशु काटते हैं उस जगह की मासपेशियों में सनसनाहट की भावना पैदा हो जाती है।विषाणु के रोगों के शरीर में पहुँचने के बाद विषाणु नसों द्वारा मष्तिक में पहुँच जाते हैं और निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने लगते हैं जैसे-
बुखार आना।
मांसपेशियों में जकड़न होना।
घूमना-फिरना ज्यादा हो जाता है।
चिड़चिड़ा होना था उग्र स्वाभाव होना।
व्याकुल होना।
अजोबो-गरीबो विचार आना।
कमजोरी होना तथा लकवा हों।
लार व आंसुओं का बनना ज्यादा हो जाता है।
दर्द होना
थकावट महसूस करना।
सिरदर्द होना।
तेज रौशनी, आवाज से चिड़न होने लगते हैं।
बोलने में बड़ी तकलीफ होती है।
अचानक आक्रमण का धावा बोलना।
जब संक्रमण बहुत अधिक हो जाता है और नसों तक पहुँच जाता है तो निम्न लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जैसे-
शरीर मध्यभाग या उदर को वक्ष:स्थल से अलग निकाली पेशी का घुमान विचित्र प्रकार का होने लगता है।
लार ज्यादा बनने लगी है और मुंह में झाग बनने लगते हैं।
सभी चीजों/वस्तुएं आदि दो दिखाई देने लगती हैं।
मुंह की मांसपेशियों को घुमाने में परेशानी होने लगती है।
रेबीज वायरस कितने समय तक जिंदा रहता है?
दस दिन के भीतर उसकी मौत हो सकती है। खाना-पानी निगलने में दिक्कत होना। अगर रैबीज से संक्रमित किसी बंदर या कुत्ते आदि ने काट लिया तो तुरंत इलाज करवाएं।
रेबीज की बीमारी कैसे होती है?
रेबीज एक बीमारी है, जो कि रेबीज नामक विषाणु से होते हैं, यह मुख्य उर्प से पशुओं की बीमारी है, लेकिन संक्रमित पशुओं द्वारा मनुष्यों में भी हो जाती यह विषाणु संक्रमित पशुओं के लार में रहता है, जब कोई पशु मनुष्य को काट लेता है, यह विषाणु मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाता है।
प्रोटोजोल,
प्रोटोजोआ एकल-कोशिका वाले यूकेरियोट्स के एक समूह के लिए एक अनौपचारिक शब्द है, या तो मुक्त-जीवित या परजीवी, जो अन्य सूक्ष्मजीवों या कार्बनिक ऊतकों और मलबे जैसे कार्बनिक पदार्थों पर फ़ीड करते हैं।
हार्मोन का मतलब क्या है?
हार्मोन या ग्रन्थिरस या अंत:स्राव जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो सजीवों में होने वाली विभिन्न जैव-रसायनिक क्रियाओं, वृद्धि एवं विकास, प्रजनन आदि का नियमन तथा नियंत्रण करता है। ये कोशिकाओं तथा ग्रन्थियों से स्रावित होते हैं। हार्मोन की कमी या अधिकता दोनों ही सजीव में व्यवधान उत्पन्न करती हैं।
हार्मोन की कमी से क्या होता है?
बहुत ज्यादा थकान- बहुत ज्यादा थकान लगना टेस्टोस्टेरोन कम होने का प्रमुख लक्षण है। इस हार्मोन की कमी से ऐसा लगता है, जैसे – कि बॉडी में बिल्कुल भी एनर्जी नहीं बची है। हालांकि, ये उम्र बढ़ने और डिप्रेशन का भी एक लक्षण हो सकता है।
हार्मोन क्या खाने से बढ़ता है?
अलसी का बीज ‘फाइटोएस्ट्रोजेन’ का एक बड़ा स्रोत है। इसके अलावा अलसी के बीज में ओमेगा -3 फैटी एसिड, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। ओमेगा-3 और ओमेगा-6 युक्त फैटी एसिड को खाने में शामिल करने से हार्मोन का संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है।
हार्मोन में असंतुलन के लक्षण,
नींद कम आना या बिल्कुल नींद न आना ।
गैस, कब्ज और बदहजमी होना।
तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन का बढ़ना।
बहुत पसीना आना, सेक्स की इच्छा में कमी।
अचानक वजन बढ़ना, कमर पर चर्बी बढ़ना।
हर समय थकान महसूस करना।
बालों का झड़ना, असमय सफेद होना तथा दाढ़ी घनी ना आना इत्यादि।
हार्मोन का क्या कार्य है?
हार्मोंस शरीर के कुछ रासायनिक तत्व होते हैं, जो रक्त की माध्यम से विभिन्न अंगों में पहुंचते हैं। हार्मोन्स आपकी बॉडी में संदेशवाहक का काम करते हैं। शरीर का प्रत्येक हार्मोन शरीर के अंगों तक जरूरी सूचनायें पहुंचाता है जिससे आपके मूड, हेल्थ, वजन, पाचन और अन्य स्वास्थ्य संबंधी बातें समझने में मदद मिलती है।
ADH ,
एंटी-मूत्रवर्धक हार्मोन गुर्दे और रक्त वाहिकाओं पर कार्य करके रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मूत्र में निकलने वाले पानी की मात्रा को कम करके आपके शरीर के तरल पदार्थ की मात्रा को संरक्षित करना है।
एडीएच क्या है और इसका कार्य क्या है?
एंटीडाययूरेटिक हार्मोन (ADH) आपके शरीर में पानी की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह आपके गुर्दे द्वारा पुन: अवशोषित पानी की मात्रा को नियंत्रित करने का काम करता है, क्योंकि वे आपके रक्त से अपशिष्ट को फ़िल्टर करते हैं।
एडीएच को वैसोप्रेसिन क्यों कहा जाता है?
सामान्य तौर पर, वैसोप्रेसिन एकत्रित नलिकाओं में पानी के पुनर्अवशोषण को बढ़ाकर गुर्दे द्वारा पानी के उत्सर्जन को कम करता है, इसलिए इसका दूसरा नाम एंटीडाययूरेटिक हार्मोन है।
कालरा,
बैक्टीरिया से होने वाला एक रोग, जो पानी से फैलता है, और जिसमें गंभीर दस्त और शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
तुरंत इलाज न होने पर हैजा जानलेवा हो जाता है।
कालरा बीमारी कैसे होती है?
हैजा बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होता है जो दूषित पानी से फैलता है। इससे गंभीर डायरिया और डिहाइड्रेशन हो सकता है। दूषित पानी पीना या दूषित भोजन खाना बैक्टीरिया के संपर्क में आने का सबसे आम माध्यम हैं। कच्चे फैल और सब्जियां भी उन इलाकों में हैजा के आम स्रोत हैं जहां बीमारी पाई जाती है।
हैजा विब्रियो कोलेरी जीवाणु के कारण होता है, जो दूषित भोजन और पानी से फैलता है। यह गंदे हाथों और नाखूनों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रेषित हो सकता है। इस संक्रामक रोग की वजह से गंभीर दस्त की समस्या हो सकती है, जिससे डिहाइड्रेशन की स्थिति पैदा हो सकती है और समय पर इलाज न होने से मौत भी हो सकती है।
धन्यवाद !!